स्पोर्ट्स डेस्क6 घंटे पहले
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19 साल की दिव्या देशमुख ने चेस का FIDE महिला वर्ल्ड कप जीत लिया है। उन्होंने फाइनल में भारत की ही कोनेरू हम्पी को टाईब्रेक राउंड में हराकर खिताब जीता। वर्ल्ड चैंपियन बनने के साथ वे भारत की 88वीं ग्रैंडमास्टर भी बन गईं।
टूर्नामेंट में दिव्या ने कई टॉप रैंक प्लेयर्स को हराया और फाइनल में जगह बनाई। हम्पी के खिलाफ फाइनल में दिव्या ने दोनों प्रमुख मुकाबले ड्रॉ खेले। जिसके बाद सोमवार को टाईब्रेक राउंड हुआ, जिसमें दिव्या ने 2.5-1.5 के स्कोर से बाजी मारी।
मैच के बाद हम्पी ने कहा कि 12वीं चाल के बाद उन्हें समझ नहीं आया कि अब क्या करना है। हालांकि, 54वीं चाल में दिव्या ने जरूरी बढ़त हासिल कर ली। जिसके बाद हम्पी ने रिजाइन कर दिया और दिव्या को जीत मिली।

19 साल की दिव्या देशमुख चेस की सबसे युवा वर्ल्ड चैंपियन बनीं।
दिव्या को ₹42 लाख मिलेंगे FIDE विमेंस वर्ल्ड कप जीतने पर दिव्या को लगभग 42 लाख रुपए मिलेंगे। वहीं वर्ल्ड कप (ओपन सेक्शन) के विजेता को लगभग ₹91 लाख मिलते हैं।
सोशल मीडिया वीडियो में देखिए दिव्या का विनिंग मोमेंट…
विमेंस कैंडिडेट्स के लिए क्वालिफाई किया दिव्या ने वर्ल्ड चैंपियन बनने के साथ अगले साल के विमेंस कैंडिडेट्स टूर्नामेंट के लिए भी क्वालिफाई कर लिया। वे इस टूर्नामेंट के लिए क्वालिफाई करने वाली दूसरी ही भारतीय बनीं। कोनेरू हम्पी ने भी फाइनल में जगह बनाने के साथ कैंडिडेट्स टूर्नामेंट के लिए क्वालिफाई कर लिया।

वर्ल्ड चैंपियन बनने के बाद रो पड़ीं दिव्या वर्ल्ड चैंपियन बनने के बाद दिव्या देशमुख ने मां को गले लगाया। मां से मिलते ही वे इमोशनल हो गईं और उनकी आंखों से आंसू छलक आए।
टाई-ब्रेक राउंड का फॉर्मेट
- 2 रैपिड गेम- हर गेम 10 मिनट का होता है।
- 10 मिनट के 2 गेम में अगर स्कोर बराबर रहा, तो 2 और फास्ट गेम। इस राउंड में हर गेम 5 मिनट का होता है।
- 5-5 मिनट के दोनों गेम भी बराबरी पर रहे, तो 3-3 मिनट के 2 गेम होते हैं।
- 3-3 मिनट में गेम ड्रॉ रहा तो 3+2 मिनट के ब्लिट्ज (तेज) गेम्स तब तक चलते रहेंगे, जब तक विजेता का फैसला नहीं हो जाता।
दिव्या ने पूर्व वर्ल्ड चैंपियन को भी हराया

सेमीफाइनल में पूर्व वर्ल्ड चैंपियन तान झोंगयी को हराने के बाद दिव्या अपने इमोशंस पर कंट्रोल नहीं कर पाई थीं।
महाराष्ट्र की दिव्या ने सेमीफाइनल में पूर्व विश्व चैंपियन चीन की तान झोंगयी को 1.5-0.5 से हराया से। दिव्या ने पहले गेम में सफेद मोहरों से खेलते हुए 101 चालों में शानदार जीत हासिल की। उन्होंने बीच गेम में लगातार दबाव बनाकर झोंगयी को गलतियां करने पर मजबूर किया।
क्वीन की अदला-बदली के बाद भी दिव्या की स्थिति मजबूत थी, हालांकि झोंगयी ने एक समय वापसी की कोशिश की और बढ़त ले ली। लेकिन समय की कमी में झोंगयी ने गलत चाल चली, जिसका फायदा उठाकर दिव्या दो प्यादों की बढ़त के साथ जीत हासिल करने में सफल रहीं।
पहले गेम में काली मोहरों से खेलते हुए दिव्या ने संतुलित रणनीति अपनाई और गेम ड्रॉ कराया था। झोंगयी ने ‘क्वीन्स गैम्बिट डिक्लाइन्ड’ ओपनिंग से शुरुआत की, जिसमें दिव्या ने मोहरों की अदला-बदली के साथ संतुलन बनाए रखा। अंत में दोनों के पास एक-एक हाथी, एक-एक छोटा मोहरा (ऊंट/घोड़ा), और तीन-तीन प्यादे एक ही हिस्से में थे, जिसके कारण गेम ड्रॉ रहा।
हम्पी ने सेमीफाइनल में टिंगजी लेई को हराया था

टाई ब्रेकर के दौरान चीनी खिलाड़ी टिंगजी लेई और भारतीय चेस खिलाड़ी कोनेरू हम्पी।
आंध्र प्रदेश की कोनेरू हम्पी ने सेमीफाइनल के टाईब्रेकर में चीन की टिंगजी लेई को हराकर फाइनल में जगह बनाई थी। टाईब्रेकर में पहली दो बाजियां 15-15 मिनट की थीं, जिसमें अतिरिक्त समय शामिल था। इसके बाद अगली दो बाजियां 10-10 मिनट की थीं। लेई ने पहली बाजी जीतकर बढ़त हासिल की, लेकिन हम्पी ने दूसरी बाजी में मुश्किल स्थिति से उबरते हुए जीत हासिल कर मुकाबला बराबर किया।
टाईब्रेकर के तीसरे सेट में हम्पी ने सफेद मोहरों से पहली बाजी में शानदार प्रदर्शन करते हुए लेई को हराया। फाइनल में पहुंचने के लिए उन्हें केवल एक ड्रॉ की जरूरत थी, लेकिन उन्होंने दूसरी बाजी भी जीतकर खिताबी मुकाबले में प्रवेश किया।
इससे पहले दोनों क्लासिकल गेम ड्रॉ रहे थे, जिसके बाद गुरुवार को टाईब्रेकर हुआ। दूसरे गेम में हम्पी के पास सफेद मोहरे थीं, लेकिन वह लेई के मजबूत बचाव को भेद नहीं पाईं।

4 भारतीयों ने बनाई थी क्वार्टर फाइनल में जगह इस टूर्नामेंट में पहली बार भारत की चार महिला खिलाड़ियों कोनेरू हम्पी, हरिका द्रोणवल्ली, आर. वैशाली और दिव्या देशमुख ने क्वार्टर फाइनल में जगह बनाई थी। जो भारतीय शतरंज के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि रही। इन्हीं 4 प्लेयर्स ने पिछले साल चेस ओलिंपियाड में भी भारत को जीत दिलाई थी। इनके साथ तानिया सचदेव भी टीम का हिस्सा थीं।
गुकेश पिछले साल बने थे वर्ल्ड चैंपियन 19 साल के भारतीय डोम्माराजू गुकेश भी पिछले साल ही मेंस में चेस के वर्ल्ड चैंपियन बने थे। जब उन्होंने 12 दिसंबर को चीन के डिंग लिरेन को हराकर महज 18 साल की उम्र में खिताब जीता था। गुकेश ने इसके बाद नंबर-1 प्लेयर नॉर्वे के मैग्नस कार्लसन को भी अलग-अलग टूर्नामेंट में 2 बार हराया।

गुकेश 18 साल की उम्र में वर्ल्ड चैंपियन बने थे।
भारत चेस ओलिंपियाड का भी चैंपियन भारत ने 23 सितंबर 2024 को चेस ओलिंपियाड का खिताब भी जीता था। देश की मेंस और विमेंस दोनों टीमों ने 45वें चेस ओलिंपियाड में चैंपियन बनकर इतिहास रचा था। मेंस टीम में देश से अर्जुन इरिगैसी, आर प्रागननंदा, डी गुकेश, विदित गुजराती और पी हरिकृष्णा थे। वहीं विमेंस टीम में हरिका द्रोणावली, आर. वैशाली, दिव्या देशमुख, वंतिका अग्रवाल, और तानिया सचदेव थीं।

चेस ओलिंपियाड की ट्रॉफी के साथ भारत की मेंस और विमेंस टीमें।
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