कैंसर के इलाज को ज्यादा पर्सनलाइज्ड बनाने की दिशा में भारतीय वैज्ञानिकों ने बड़ी सफलता हासिल की है. भारत में एक नई रिसर्च में ऐसा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) फ्रेमवर्क डिवेलप किया गया है, जो कैंसर की कोशिकाओं के भीतर होने वाली जटिल गतिविधियों को पढ़कर बता सकता है कि ट्यूमर किस वजह से बढ़ रहा है और मरीज के शरीर में कौन-सी खतरनाक प्रक्रियाएं एक्टिव हैं?
कैंसर को समझने का पुराना तरीका अब काफी नहीं!
अब तक डॉक्टर कैंसर का मूल्यांकन उसके आकार, फैलाव और स्टेज के आधार पर करते रहे हैं, लेकिन एक ही स्टेज वाले दो मरीजों का रिजल्ट कई बार अलग निकलता है, क्योंकि ट्यूमर के भीतर चलने वाली मॉलिक्यूलर प्रक्रियाओं को ये स्टेजिंग सिस्टम पहचान नहीं पाते. नई AI तकनीक इसी कमी को पूरा करती है. यह कैंसर को उसकी ‘मॉलिक्यूलर पर्सनैलिटी’ के आधार पर समझती है, न कि सिर्फ उसके आकार या फैलाव से.
कैंसर के सिग्नल्स को पढ़ने वाला पहला AI फ्रेमवर्क
SN Bose National Centre for Basic Sciences और Ashoka University की टीम ने मिलकर OncoMark नाम का AI फ्रेमवर्क बनाया है. यह पहली ऐसी तकनीक है, जो कैंसर के हॉलमार्क्स जैसे मेटास्टेसिस, इम्यून सिस्टम से बच निकलना, जीन अस्थिरता और थैरेपी रेसिस्टेंस को सटीक रूप से पहचान सकती है. इस रिसर्च टीम का नेतृत्व डॉ. शुभाशिस हलदार और डॉ. देबयान गुप्ता ने किया.
14 तरह के कैंसर पर की गई रिसर्च
शोधकर्ताओं ने 14 प्रकार के कैंसर से ली गई 31 लाख कोशिकाओं का डेटा AI में डाला. AI ने इन पर काम करके ‘प्सूडो-बायोप्सी’ तैयार कीं, जिनसे यह समझ आया कि कौन-सा ट्यूमर किन बायोलॉजिकल प्रक्रियाओं से संचालित हो रहा है. यह पहली बार है, जब वैज्ञानिक मॉलिक्यूलर लेवल पर देख पाए हैं कि कैंसर स्टेज बढ़ने के साथ हॉलमार्क एक्टिविटीज कैसे बढ़ती जाती हैं.
कैसा रहा रिजल्ट?
OncoMark ने इंटरनल टेस्टिंग में 99% से ज्यादा सटीकता हासिल की. 5 स्वतंत्र समूहों में भी इसकी सटीकता 96% से ऊपर रही. 20,000 असली मरीजों के नमूनों पर वैलिडेशन के बाद शोधकर्ताओं ने इसे व्यापक रूप से उपयोग योग्य बताया है.
नई तकनीक से होंगे ये फायदे
- पता चलेगा कि मरीज में कौन-सा हॉलमार्क सक्रिय है. इससे कैंसर की असली वजह पर सीधे निशाना साधने वाली दवा या थैरेपी चुनी जा सकेगी.
- ऐसे ट्यूमर की पहचान होगी, जो दिखने में कम खतरनाक लेकिन अंदर से तेजी से बढ़ रहे हों. ऐसे मामलों में पहले से इंटरवेशन करके मरीज की जान बचाई जा सकती है.
क्या होगा फायदा?
विशेषज्ञों की मानें तो यह सिस्टम उन मरीजों की भी मदद करेगा, जिनका कैंसर पारंपरिक स्टेजिंग सिस्टम में हल्का दिखता है, लेकिन असल में कहीं ज्यादा आक्रामक होता है. यह रिसर्च Communications Biology (Nature Publishing Group) में प्रकाशित हुई है. भारत की इस उपलब्धि को कैंसर रिसर्च में बड़ा कदम माना जा रहा है, जो आने वाले समय में टार्गेटेड थैरेपी और पर्सनलाइज़्ड मेडिसिन को नई दिशा दे सकता है.
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Disclaimer: यह जानकारी रिसर्च स्टडीज और विशेषज्ञों की राय पर आधारित है. इसे मेडिकल सलाह का विकल्प न मानें. किसी भी नई गतिविधि या व्यायाम को अपनाने से पहले अपने डॉक्टर या संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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