काबुल4 मिनट पहले
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अफगानिस्तान के हेलमंद प्रांत में 6 साल की एक बच्ची की शादी 45 साल के एक व्यक्ति से कर दी गई।
अमेरिका स्थित अफगान आउटलेट Amu.tv की रिपोर्ट के मुताबिक शादी की तस्वीरें सामने आने के बाद खुद तालिबान अधिकारी हैरान रह गए और बच्ची को उसके ससुराल ले जाने से रोक दिया।
लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि जब वह 9 साल की हो जाएगी, तब उसे पति के घर भेजा जा सकता है।
हश्त-ए-सुबह डेली के मुताबिक दूल्हे की पहले से दो पत्नियां है। उसने बच्ची के परिवार को पैसे देकर यह रिश्ता तय करवाया। शादी हेलमंद के मर्जा जिले में हुई।
इसके बाद पुलिस ने बच्ची के पिता और दूल्हे को गिरफ्तार कर लिया, लेकिन अब तक किसी पर आपराधिक मामला दर्ज नहीं किया गया है।
तालिबान की वापसी के बाद बाल-विवाह के केस बढ़े
तालिबान के 2021 में दोबारा सत्ता में आने के बाद, देश में न सिर्फ बाल विवाह की घटनाएं बढ़ी हैं, बल्कि उन्हें लेकर सामाजिक सहमति भी बनती जा रही है। लड़कियों की शिक्षा और काम पर पाबंदी के चलते कई परिवार बेटियों को बोझ मानकर जल्दी ब्याह दे रहे हैं।
UN Women की रिपोर्ट के अनुसार, तालिबान के महिला-विरोधी कानूनों के चलते देश में बाल विवाह में 25% और किशोरियों के गर्भधारण में 45% की वृद्धि हुई है।

UNICEF के मुताबिक, अफगानिस्तान दुनिया में सबसे ज्यादा बाल वधुओं वाला देश बनता जा रहा है। (फाइल फोटो)
बाल विवाह के पीछे सामाजिक मान्यताएं और कुप्रथाएं
अफगान समाज में अक्सर लड़कियों को बचपन में ही नामकरण प्रथा के तहत किसी रिश्तेदार से मंगनी कर दी जाती है। इसे पारिवारिक संपत्ति की तरह देखा जाता है।
कई इलाकों में ‘वलवर’ यानी दहेज के रूप में पैसा लेकर लड़कियों की शादी तय होती है। यह रकम लड़की की खूबसूरती, सेहत और शिक्षा के स्तर के आधार पर तय होती है।
द अफगान टाइम्स को दिए इंटरव्यू में उरुजगान की एक महिला अमीरी ने बताया कि उन्होंने अपनी 14 वर्षीय बेटी की शादी 27 साल के पुरुष से 3 लाख अफगानी में कर दी।
महिला ने बताया कि उनकी बेटी बहुत छोटी है, लेकिन घर में खाने को कुछ नहीं था, यही रास्ता बचा था।
अफगान समाज में ‘बाद’ नाम की प्रथा के तहत खून-खराबे वाले झगड़ों को सुलझाने के लिए लड़कियों को दुश्मन परिवारों को सौंप दिया जाता है। एक बार सौंपे जाने के बाद लड़की अपने पति के परिवार की इज्जत (नमूस) बन जाती है।

अगर लड़की विधवा हो जाए तो उसे पति के किसी रिश्तेदार से जबरन फिर ब्याह दिया जाता है।
तालिबान नेताओं के खिलाफ ICC ने गिरफ्तारी वारंट जारी किए
इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट (ICC) ने 8 जुलाई को तालिबान के सर्वोच्च नेता हिबातुल्लाह अखुंदजादा और अफगानिस्तान के चीफ जस्टिस अब्दुल हकीम हक्कानी के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किए हैं।
इन दोनों पर अफगान महिलाओं, लड़कियों और तालिबान की कठोर जेंडर नीतियों का विरोध करने वालों पर अत्याचार करने का आरोप है। ये वारंट मानवता के खिलाफ अपराधों के तहत जारी किए गए हैं।
कोर्ट का कहना है कि इनके खिलाफ “क्राइम्स अगेंस्ट ह्यूमैनिटी” के पर्याप्त आधार हैं।
यह पहली बार है जब ICC ने तालिबान के शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ ऐसा कोई कानूनी कदम उठाया है। कोर्ट ने कहा कि

15 अगस्त 2021 से, जब तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता संभाली, तब से लेकर 20 जनवरी 2025 तक महिलाओं और लड़कियों पर कई गंभीर अपराध किए गए। इनमें हत्या, कैद, बलात्कार, यातना और जबरन गायब करना शामिल हैं। ये ज़ुल्म सिर्फ लिंग के आधार पर ही नहीं बल्कि तालिबान विरोधी विचार रखने वालों पर भी हुए।

तालिबान ने ICC के आदेशों को खारिज कर दिया और कहा कि वह ICC को मान्यता नहीं देता। तालिबान ने वारंट को इस्लाम के खिलाफ दुनिया की दुश्मनी करार दिया है।
ICC बोला- महिलाओं को शिक्षा से वंचित किया
कोर्ट ने कहा कि तालिबान ने विशेष रूप से लड़कियों और महिलाओं को निशाना बनाया। उन्हें शिक्षा, आवाजाही, निजता और धार्मिक अभिव्यक्ति जैसे बुनियादी अधिकारों से वंचित कर दिया।
वारंट के मुताबिक इन महिलाओं और लड़कियों का समर्थन या तालिबान की नीतियों का विरोध करने वाले लोगों को भी भी सजा दी गई।
ICC ने साफ किया कि ‘जेंडर आधारित उत्पीड़न’ केवल हिंसा नहीं, बल्कि सरकारी नीतियों और सामाजिक नियमों के जरिए किया गया वह व्यवस्थित उत्पीड़न भी है। यह महिलाओं को बराबरी से वंचित करता है।
हालांकि, गिरफ्तारी वारंट को फिलहाल सील रखा गया है ताकि पीड़ितों और गवाहों की सुरक्षा बनी रहे, लेकिन कोर्ट ने इसकी जानकारी सार्वजनिक करना जरूरी समझा ताकि भविष्य में ऐसे अपराधों को रोका जा सके।
कोर्ट ने कहा कि यह कार्रवाई ICC के उस उद्देश्य का हिस्सा है, जिसमें कमजोर तबकों के खिलाफ हो रहे गंभीर और व्यवस्थित मानवाधिकार हनन को रोका जाए।

सुनवाई करने वाली प्री-ट्रायल चैंबर II ने कहा कि तालिबान नेताओं ने ये अपराध आदेश देकर, उकसाकर या समर्थन देकर करवाए। (फाइल फोटो)
ICC के पास गिरफ्तारी की पावर नहीं
ICC ने यह वारंट जारी तो कर दिया है, लेकिन उसके पास संदिग्धों की गिरफ्तारी की शक्तियां नहीं हैं। वह सिर्फ उन देशों में अपने अधिकार का इस्तेमाल कर सकता है, जिन्होंने इस कोर्ट की स्थापना करने वाले समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।

अफगानी महिलाओं के इबादत के वक्त तेज बोलने पर रोक
तालिबान ने पिछले साल महिलाओं के लिए एक नया फरमान जारी किया था। इसके मुताबिक महिलाओं के लिए तेज आवाज में इबादत करने पर रोक लगा दी गई। तालिबान के मंत्री मोहम्मद खालिद हनाफी ने यह आदेश जारी किया।
उन्होंने कहा कि महिलाओं को कुरान की आयतें इतनी धीमी आवाज में पढ़नी होंगी कि उनके पास मौजूद दूसरी महिलाओं को यह सुनाई न दे। हनाफी ने कहा कि महिलाओं को तकबीर या अजान पढ़ने की इजाजत नहीं है तो फिर वे गाना भी नहीं गा सकतीं और न ही संगीत सुन सकती हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, हनाफी ने कहा

महिलाओं की आवाज ‘औराह’ होती है, यानी कुछ ऐसा जिसे छिपाना जरूरी है। महिलाओं की आवाज सार्वजनिक तौर पर या दूसरी महिलाओं को भी सुनाई नहीं देनी चाहिए।
फिलहाल यह आदेश सिर्फ कुरान पढ़ने तक ही सीमित है, लेकिन कई एक्सपर्ट्स ने आशंका जताई है कि तालिबान महिलाओं के सार्वजनिक तौर पर बोलने पर भी बैन लगा सकता है।