
घर खरीदते समय सबसे बड़ी राहत तब मिलती है, जब रजिस्ट्री हो जाए और चाबियां हाथ में आ जाएं। लेकिन नोएडा जैसे शहरों में हजारों खरीदारों के मन में आज भी एक सवाल बना रहता है कि क्या प्रॉपर्टी अलॉट होने और लीज डीड साइन होने के बाद अथॉरिटी कोई नया चार्ज या बढ़ी हुई रकम मांग सकती है? खासतौर पर तब, जब प्रॉपर्टी फ्रीहोल्ड नहीं बल्कि लीजहोल्ड हो।
दरअसल, नोएडा और ग्रेटर नोएडा में खरीदारों को आमतौर पर 90 या 99 साल की लीज पर जमीन या मकान मिलता है। इस लीज के बदले अथॉरिटी या तो सालाना लीज रेंट लेती है या फिर वन टाइम लीज रेंट का ऑप्शन देती है। अहम बात यह है कि जो शर्तें अलॉटमेंट लेटर और लीज डीड में लिखी होती हैं, वही दोनों पक्षों पर लागू होती हैं।
कानून क्या कहता है
कानूनी विशेषज्ञों के मुताबिक, अगर किसी खरीदार ने शुरुआत में ही वन टाइम लीज रेंट चुका दी है और लीज डीड में यह साफ लिखा है कि आगे कोई सालाना किराया नहीं देना होगा, तो अथॉरिटी बाद में मनमाने तरीके से कोई नया चार्ज नहीं लगा सकती। जब तक लीज डीड में पहले से किराया बढ़ाने या शर्तों में बदलाव का प्रावधान न हो, तब तक एकतरफा बदलाव कानूनी तौर पर टिकाऊ नहीं माना जाता।
ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट
ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट भी यही कहता है कि लीज के लिए सालाना किराया अनिवार्य नहीं है। वन टाइम रकम पर भी वैध हो सकती है। यानी अगर सरकार या अथॉरिटी ने शुरुआत में एक ही बार में भुगतान स्वीकार कर लिया, तो बाद में नई आर्थिक जिम्मेदारी थोपना आसान नहीं होता।
नोएडा अथॉरिटी के नियम
नोएडा अथॉरिटी के मामलों में भी यही सिद्धांत लागू होता है। अगर लीज डीड में सालाना लीज रेंट बढ़ाने या समय-समय पर संशोधन का क्लॉज मौजूद है, तभी अथॉरिटी उसे लागू कर सकती है। लेकिन जिन मामलों में खरीदार ने वन टाइम लीज रेंट चुना है और डीड में साफ लिखा है कि आगे कोई रेंट नहीं लगेगा, वहां अतिरिक्त मांग खरीदार की सहमति के बिना नहीं की जा सकती।
कोर्ट से मिली राहत
ऐसा ही एक मामला राजस्थान में सामने आया था, जहां सरकार ने कई साल बाद नया लीज रेंट लगाने की कोशिश की। हालांकि हाईकोर्ट ने इसे खारिज कर दिया और खरीदारों को राहत दी। खरीदारों के लिए सबसे जरूरी सलाह यही है कि प्रॉपर्टी खरीदते वक्त अलॉटमेंट लेटर और लीज डीड की शर्तों को ध्यान से पढ़ें। क्योंकि कानून में आपकी सुरक्षा है, लेकिन वही शर्तें आपकी सबसे बड़ी ढाल भी बनती हैं।


