इस्लामाबाद4 घंटे पहले
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सिंध प्रांत के मंत्री सैयद सरदार अली शाह ने शुक्रवार को असेंबली में भाषण दिया। इस दौरान उन्होंने भारत विरोधी बयान दिया।
पाकिस्तान के सिंध प्रांत के मंत्री सैयद सरदार अली शाह ने शुक्रवार को कहा कि गुजरात, हरियाणा और राजस्थान हमारे हैं। उन्होंने कहा कि हम इसे साबित करके दिखाएंगे।
सिंध असेंबली में अली शाह ने भारतीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के सिंध से जुड़े बयान पर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि अगर भारत सिंध पर टिप्पणी कर सकता है, तो वे भी भारत के राज्यों पर दावा कर सकते हैं।
दरअसल राजनाथ सिंह ने 23 नवंबर को कहा था कि आज सिंध की जमीन भारत का हिस्सा भले न हो, लेकिन सभ्यता के हिसाब से सिंध हमेशा भारत का हिस्सा रहेगा। जहां तक जमीन की बात है। कब बॉर्डर बदल जाए कौन जानता है, कल सिंध फिर से भारत में वापस आ जाए।

राजनाथ सिंह ने ये बातें रविवार को दिल्ली में सिंधी सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहीं।
पाकिस्तान राजनाथ के बयान को भड़काऊ बता चुका
पाकिस्तान ने सोमवार को राजनाथ के बयान पर आपत्ति जताते हुए उसे गलत, भड़काऊ और खतरनाक बताया था। पाकिस्तान ने कहा कि ऐसे बयान अंतरराष्ट्रीय कानून और देशों की तय सीमाओं के खिलाफ हैं। पाकिस्तान ने मांग की कि भारत के नेता इस तरह के बयान से बचें, क्योंकि इससे क्षेत्र में तनाव बढ़ सकता है।
पाकिस्तान ने भारत के अंदरूनी मामलों पर बयानबाजी करते हुए कहा कि भारत को अल्पसंख्यकों की सुरक्षा करनी चाहिए। जम्मू-कश्मीर को लेकर पाकिस्तान ने फिर से कहा कि इस मसले को संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों और कश्मीरी लोगों की इच्छा के मुताबिक हल किया जाना चाहिए।
पाकिस्तान का कहना है कि वह भारत के साथ सभी मुद्दों को शांति से सुलझाना चाहता है, लेकिन साथ ही अपने देश की सुरक्षा और संप्रभुता की रक्षा के लिए हमेशा तैयार है।
सिंध के नेता ने राजनाथ के बयान का स्वागत किया
जेय सिंध मुत्तहिदा महाज (JSMM) के नेता शफी बुरफत ने राजनाथ सिंह के बयान का गर्मजोशी से स्वागत किया है। उन्होंने लिखा कि यह बयान सिंधी लोगों के लिए ऐतिहासिक, हौसला देने वाला और प्रेरणादायक है।
उनके मुताबिक यह बयान सिंध की आजादी और भारत के साथ भविष्य में मजबूत संबंधों की उम्मीद जगाता है। उन्होंने कहा कि सिंधुदेश आंदोलन शुरू से ही इस विचार को मानता रहा है कि सिंध और भारत के बीच गहरे सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और भावनात्मक संबंध हैं।
बुरफत ने पाकिस्तान पर आरोप लगाया कि वह सिंधी लोगों की पहचान, भाषा और संस्कृति को कमजोर करने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में सिंधियों के राजनीतिक अधिकार छीने जा रहे हैं, उनके संसाधनों का शोषण किया जा रहा है और कार्यकर्ताओं पर अत्याचार किए जा रहे हैं।

हिंदू-मुस्लिमों ने मिलकर लड़ी थी अलग सिंध की लड़ाई
1936 तक गुजरात और महाराष्ट्र के साथ सिंध भी बॉम्बे प्रोविंस का हिस्सा हुआ करता था। इसे अलग प्रोविंस बनवाने के लिए सिंध के मुस्लिमों और हिंदुओं ने मिलकर आंदोलन किया था। सिंध में रहने वाले लोगों का कहना था कि मराठी और गुजरातियों के दबदबे के चलते उनके हकों और परंपराओं को दरकिनार किया जा रहा है।
1913 में हरचंद्राई नाम के एक हिंदू ने ही सिंध के लिए एक अलग कांग्रेस असेंबली की मांग की थी। 1936 में सिंध के अलग प्रांत बनते ही वहां की राजनीतिक आबोहवा बदलने लगी। 1938 में इसी जमीं से पहली बार अलग पाकिस्तान की मांग उठी।
सिंध की राजधानी कराची में हुए मुस्लिम लीग के सालाना सेशन में मुहम्मद अली जिन्ना ने पहली बार आधिकारिक तौर पर मुस्लिमों के लिए अलग देश पाकिस्तान की मांग की थी।
1942 में सिंध की विधानसभा ने पाकिस्तान की मांग को लेकर एक प्रस्ताव पारित किया। इस वक्त सिंध के लोगों को इस बात की भनक तक नहीं थी कि बंटवारा उन्हें बर्बादी की तरफ धकेलेगा।
प्रस्ताव के महज 5 साल बाद 1947 में भारत 2 टुकड़ों में बंट गया। बाकी पाकिस्तान की तरह यहां से भी हिंदुओं को अपना घर छोड़कर भारत की तरफ कूच करना पड़ा।
20वीं सदी के शुरुआती दौर तक हिंदुओं की भूमिका अहम थी
20वीं सदी के शुरुआती दौर तक सिंध की इकोनॉमी और उसकी शासन व्यवस्था में हिंदुओं की भूमिका अहम थी। पाकिस्तानी रिसर्चर और लेखक ताहिर मेहदी के मुताबिक बंटवारे से पहले सिंध में हिंदू आबादी मिडिल क्लास और अपर क्लास के दायरे में आती थी।
ये लोग सिंध के शहरी इलाकों कराची और हैदराबाद में रहते थे। ये हिंदू न सिर्फ स्किल्ड थे, बल्कि इन्हें व्यापार की गहरी समझ भी थी।
बंटवारे के वक्त 8 लाख हिंदुओं को सिंध छोड़ना पड़ा था। इससे सिंध में कुछ महीनों के भीतर ही मिडिल क्लास तबका पूरी तरह गायब हो गया। पीछे सिर्फ दलित हिंदू बचे। इससे वहां की अर्थव्यवस्था को गहरा झटका लगा। भारत से पलायन कर सिंध में जो लोग आए उनमें वो स्किल नहीं थीं।
पाकिस्तान के अखबार डॉन में ताहिर लिखते हैं कि भारत का सिंधी समुदाय आज भी खुशहाल है, उनके बड़े बिजनेस हैं। इसके ठीक उलट पाकिस्तान के सिंधी गरीब हैं।
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