तेल अवीव6 घंटे पहले
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इजराइली संसद में बेन ग्विर। (फाइल फोटो)
इजराइल के सुरक्षा मंत्री इतामार बेन-ग्विर ने सोमवार को कहा कि फिलिस्तीन को मान्यता मिलने पर वहां के बड़े अधिकारियों को चुन-चुन कर मारा (टारगेट किलिंग) जाना चाहिए।
संसद में बोलते हुए ग्विर ने कहा कि अगर संयुक्त राष्ट्र (UN) फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने की हिम्मत करता है, तो नेतन्याहू फिलिस्तीनी अथॉरिटी (PA) के अध्यक्ष महमूद अब्बास को गिरफ्तार करें और काल कोठरी (सॉलिटरी कन्फाइनमेंट) में डाल दिया जाए।
उन्होंने नेतन्याहू से मांग की, “आपको यह घोषणा करनी होगी कि महमूद अब्बास को कोई छूट नहीं मिलेगी। अगर संयुक्त राष्ट्र इसे मान्यता देता है, तो आपको दिखाना होगा कि आप महमूद अब्बास की गिरफ्तारी के लिए तैयार हैं।”
वहीं, आज ही UN सुरक्षा परिषद (UNSC) ने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के गाजा पीस प्लान प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। इस प्रस्ताव का मकसद गाजा में शांति बहाल करना है।

फिलिस्तीनी विदेश मंत्रालय ने टिप्पणी का विरोध किया
फिलिस्तीनी विदेश मंत्रालय और राष्ट्रपति कार्यालय ने अलग-अलग बयानों में इस टिप्पणी की निंदा की है।
विदेश मंत्रालय ने टिप्पणियों को उकसाने वाला बताया। साथ ही अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से बेन-ग्विर को जवाबदेह ठहराने के लिए ठोस उपाय करने का आग्रह किया।
राष्ट्रपति कार्यालय ने कहा कि वह बेन-ग्विर के बयानों के लिए इजराइल सरकार को जिम्मेदार मानता है।
7 देश ग्विर पर बैन लगा चुके
इजराइली मंत्री बेन ग्विर पर अब तक 7 देश बैन लगा चुके हैं। इसमें ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूजीलैंड, नॉर्वे, ब्रिटेन, नीदरलैंड और स्लोवेनिया शामिल है। हालांकि अमेरिका ने इस पर नाराजगी जाहिर की थी और इसे गैरजरूरी बताया था।
इन देशों ने एक संयुक्त बयान में कहा था कि मंत्री ने कब्जे वाले वेस्ट बैंक और गाजा में फिलिस्तीनियों के खिलाफ हिंसा भड़काई है। इसलिए उनकी संपत्ति जब्त की जाएगी और उन पर इन देशों में यात्रा करने पर रोक लगाई जाएगी।

ट्रम्प के गाजा पीस प्लान को UNSC में मंजूरी मिली
यह बयान ऐसे समय में आया है, जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में ‘गाजा शांति योजना’ पर वोटिंग हुई। सुरक्षा परिषद ने सोमवार को अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के गाजा पीस प्लान प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है।
इस प्रस्ताव का मकसद गाजा में शांति बहाल करना, अंतरराष्ट्रीय फोर्स की तैनाती करना और भविष्य में फिलिस्तीन देश की संभावना को आगे बढ़ाना है।
कुल 13 देशों ने इसके पक्ष में वोट दिया, जबकि रूस और चीन ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया। किसी भी देश ने विपक्ष में वोट नहीं किया।

अमेरिकी राजदूत माइकल वाल्ट्ज और ब्रिटेन के उप-राजदूत जेम्स करियुकी सोमवार को संयुक्त राष्ट्र में मतदान करते हुए।
क्या है प्रस्ताव में…
इंटरनेशनल स्टेबलाइजेशन फोर्स (ISF) की तैनाती की इजाजत
- यह फोर्स इजराइल, मिस्र और नई ट्रेंड फिलिस्तीनी पुलिस के साथ मिलकर गाजा में सुरक्षा और सीमाओं की निगरानी करेगा।
- उग्रवादी संगठनों से हथियार सरेंडर करवाने में मदद करेगा।
- मानवीय सहायता की सुरक्षित आपूर्ति तय करेगा।
‘बोर्ड ऑफ पीस’ नाम से एक अंतरिम प्रशासन का गठन
- यह व्यवस्था 2027 के अंत तक चलेगी।
- इसमें ट्रम्प के अध्यक्ष रहने की संभावना बताई गई है।
वित्त मंत्री बोले- फिलिस्तीन को खत्म करने के लिए बहुत मेहनत की
वहीं, इजराइली वित्त मंत्री बेजलेल स्मोट्रिच ने उसी दिन अपनी पार्टी की बैठक में यह भी घोषणा कर दी कि फिलिस्तीनी राज्य की ओर जाने वाला कोई भी प्लान कभी भी लागू नहीं किया जाएगा।
उन्होंने कहा, “मेरी जिंदगी का मिशन यही है कि हमारे देश के दिल में फिलिस्तीनी राज्य न बने। मैंने इस विचार को खत्म के लिए बहुत मेहनत की है और आगे भी करता रहूंगा।”
स्मोट्रिच ने तंज कसते हुए कहा कि अगर फिलिस्तीनियों को राज्य चाहिए तो अरब देशों या यूरोप के पास जाएं, यहां कोई जगह नहीं है।
रूस ने ‘टू स्टेट सॉल्यूशन’ की मांग की
प्रस्ताव में पहली बार यह भी बताया गया है कि अगर फिलिस्तीनी प्रशासन सुधार करता है और गाजा का पुनर्निर्माण तेजी से होता है, तो भविष्य में फिलिस्तीन को एक अलग देश के रूप में बनने का रास्ता खुल सकता है। हालांकि इजराइल ने इस विचार को पूरी तरह खारिज कर दिया है।
इस बीच रूस ने एक अलग प्रस्ताव रखा था, जिसमें टू स्टेट सॉल्यूशन की मांग की गई थी, लेकिन अंतरराष्ट्रीय फोर्स या नए प्रशासन की तुरंत इजाजत नहीं थी। दूसरी तरफ, अमेरिका को कतर, मिस्र, सऊदी अरब, UAE, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, जॉर्डन और तुर्किये जैसे कई मुस्लिम देशों का समर्थन भी मिला।

75% देश फिलिस्तीन को मान्यता दे चुके
फिलिस्तीन को संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से करीब 75% देश मान्यता दे चुके हैं। संयुक्त राष्ट्र में इसे ‘परमानेंट ऑबजर्वर स्टेट’ का दर्जा हासिल है। सितंबर में फ्रांस, मोनाको, माल्टा, लक्जमबर्ग और बेल्जियम ने फिलिस्तीन को स्वतंत्र देश के तौर पर मान्यता दे दी थी।
इसका मतलब है कि फिलिस्तीन को संयुक्त राष्ट्र के कार्यक्रमों में शामिल होने की अनुमति तो है लेकिन वोटिंग का अधिकार नहीं है।
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