
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने बैंकों के लिए अधिग्रहण फाइनेंसिंग और IPO में शेयर खरीद के नियमों में बड़ा बदलाव किया है। RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा ने शुक्रवार को कहा कि बैंकों पर लगी रोक हटाने से वास्तविक अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी और बैंकिंग सेक्टर को नए अवसर मिलेंगे। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह निर्णय सुरक्षा मानकों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है, जिससे बैंक और उनके हितधारक सुरक्षित ढंग से नए बिजनेस के फायदों का लाभ उठा सकें।
अधिग्रहण और IPO फाइनेंसिंग
पिछले महीने, RBI ने बैंकों को कंपनियों के अधिग्रहण के लिए फंडिंग करने की अनुमति दी और IPO में शेयर खरीदने के लिए ऋण की सीमा बढ़ा दी। मल्होत्रा ने बताया कि इस नए ढांचे में गार्डरेल्स भी रखे गए हैं। उदाहरण के लिए, बैंक कुल डील वैल्यू का अधिकतम 70% ही फाइनेंस कर सकेंगे और डेब्ट-टू-इक्विटी अनुपात पर भी सीमा तय की गई है। इसका उद्देश्य खतरे को कंट्रोल करते हुए बैंकिंग एक्टिविटी को बढ़ावा देना है।
नियामक का सीमित दखल
भारतीय स्टेट बैंक के बैंकिंग और इकोनॉमिक्स कॉन्क्लेव में बोलते हुए गवर्नर ने कहा कि कोई भी नियामक बोर्ड के निर्णय की जगह नहीं ले सकता। भारत जैसे देश में हर केस, हर लोन, हर डिपॉजिट और हर ट्रांजेक्शन अलग होता है। इसलिए, नियमों को वन साइज फिट्स ऑल की तरह लागू नहीं किया जा सकता। बैंकों को अपने मामलों के आधार पर निर्णय लेने की फ्रीडम दी जानी चाहिए।
सुपरवाइजरी कार्रवाई का लाभ
मल्होत्रा ने यह भी बताया कि RBI की सुपरवाइजरी कार्रवाई ने अनियंत्रित विकास को नियंत्रित करने और बैंकिंग सिस्टम को मजबूत, लचीला और सुरक्षित बनाने में मदद की है। उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक के पास रिस्क मैनेजमेंट, प्रोविजनिंग नियम और काउंटर साइक्लिकल बफर जैसे पर्याप्त उपकरण हैं, जो उभरते हुए खतरों को रोकने में सक्षम हैं।
आर्थिक अवसर और निवेश
विशेषज्ञों का मानना है कि इस कदम से बैंकों के लिए अधिग्रहण और IPO में निवेश आसान होगा, जिससे कंपनियों को फंडिंग उपलब्ध होगी और आर्थिक गतिविधियों में तेजी आएगी। वहीं, निवेशक और बैंक दोनों ही इससे नए अवसरों का लाभ उठा पाएंगे।


