वॉशिंगटन/नई दिल्ली1 घंटे पहले
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अमेरिका ने भारत पर सबसे ज्यादा कुल 50% टैरिफ लगाने का ऐलान किया है। दोनों देशों के बीच पिछले 4 महीने से ट्रेड डील पर बातचीत चल रही थी, जो नाकामयाब रही। इसके पीछे की बड़ी वजह भारत का कृषि और डेयरी के मामले में अमेरिका से समझौते से इनकार करना भी है।
हालांकि भारत की तरह कम से कम 5 देश ऐसे हैं, जिन्होंने ट्रम्प सरकार से कृषि और डेयरी को लेकर कोई समझौता नहीं किया। इन देशों में भारत, साउथ कोरिया, कनाडा, स्विट्जरलैंड और आइसलैंड जैसे देश शामिल हैं।
इन देशों ने अमेरिका से समझौता क्यों नहीं किया स्टोरी में जानेंगे…
भारत मांसाहारी गाय का दूध लेने को तैयार नहीं
अमेरिका चाहता है कि उसकी डेयरी प्रोडक्ट्स जैसे दूध, पनीर, घी को भारत में आयात की अनुमति मिले। भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है और इस सेक्टर में करोड़ों छोटे किसान लगे हुए हैं।
भारत सरकार को डर है कि अगर अमेरिकी डेयरी उत्पाद भारत में आएंगे, तो वे स्थानीय किसानों को भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसके अलावा, धार्मिक भावना भी जुड़ी हुई है।
अमेरिका में गायों को बेहतर पोषण के लिए जानवरों की हड्डियों से बने एंजाइम (जैसे रैनेट) को उनके खाने में मिलाया जाता है। भारत ऐसी गायों के दूध को ‘नॉन वेज मिल्क’ यानी मांसाहारी दूध मानता है।

भारत की शर्त है कि कोई भी डेयरी उत्पाद तभी भारत में बिक सकता है जब वह यह प्रमाणित करे कि वह पूरी तरह शाकाहारी स्रोत से बना हो।
भारत मॉडिफाइड फसलों पर पाबंदी हटाने के पक्ष में नहीं
इसके साथ ही अमेरिका चाहता है कि गेहूं, चावल, सोयाबीन, मक्का और फलों जैसे सेब, अंगूर आदि को भारत के बाजार में कम टैक्स पर बेचा जा सके। वह चाहता है कि भारत अपनी इम्पोर्ट ड्यूटी को कम करे।
वहीं, भारत अपने किसानों की सुरक्षा के लिए इन पर उच्च टैरिफ लगाता है ताकि सस्ते आयात से भारतीय किसान प्रभावित न हों।
इसके अलावा, अमेरिका GMO फसलों को भी भारत में बेचने की कोशिश करता रहा है, लेकिन भारत सरकार और किसान संगठन इसका कड़ा विरोध करते हैं।

भारत में मॉडिफाइड फसलों का विरोध क्यों?
जीन बदलकर बनाई गई फसल को जेनेटकली मॉडिफाइड ऑर्गैनिज्म्स (GMO) कहते हैं। अमेरिका दुनिया में GMO फसलों का सबसे बड़ा उत्पादतक और निर्यातक है।भारत ने कपास के अलावा बाकी सभी मॉडिफाइड फसलों पर रोक लगा रखी है। ये मॉडिफाइड फसलें वैज्ञानिक तरीके से बनाई जाती हैं।
भारत में बीज और खाद्य सुरक्षा पर विदेशी कंपनियों का नियंत्रण राष्ट्रीय हित के खिलाफ माना जाता है। भारत अगर इसकी अनुमति दे देता है तो खेती-किसानी पर अमेरिकी कंपनियों का वर्चस्व बढ़ सकता है। इसके अलावा स्वास्थ्य और पर्यावरण जैसे मुद्दे को लेकर भी इस फसल पर सवाल उठते रहे हैं।
साउथ कोरिया: चावल और बीफ मार्केट ओपन नहीं किया
अमेरिका ने साउथ कोरिया पर 15% टैरिफ लगाया है। इसके बदले में साउथ कोरिया, अमेरिका से 100 अरब डॉलर की एनर्जी खरीदेगा और 350 अरब डॉलर का निवेश करेगा। इसके साथ ही अमेरिकी सामानों की साउथ कोरिया के मार्केट में टैक्स फ्री एंट्री होगी।
हालांकि, साउथ कोरिया ने अपने किसानों के हित में चावल और बीफ मार्केट को ओपन नहीं किया है। साउथ कोरिया ने 30 महीने से ज्यादा उम्र वाले अमेरिकी मवेशियों का बीफ आयात करने पर रोक लगा रखी है। इसकी वजह मैड काउ डिजीज है। ऐसा माना जाता है कि यह बीमारी अधिक उम्र के मवेशियों में होती है।
इस प्रतिबंध के बावजूद साउथ कोरिया अब भी अमेरिकी गोमांस का सबसे बड़ा खरीदार है। 2024 में उसने करीब 2.22 अरब डॉलर का अमेरिकी मांस खरीदा था।
इसके अलावा जेनेटिकली मॉडिफाइड फसलों पर भी सख्त नियम हैं। कोरिया की किसान संघ और हानवू एसोसिएशन ने सरकार को चेतावनी दी थी कि वह अमेरिकी दबाव में आकर अपने किसानों की बलि न दे।

कनाडा: विदेशी प्रोडक्ट पर 200 से ज्यादा टैरिफ
अमेरिका ने कनाडा पर 35% टैरिफ लगाया है। ट्रम्प ने कनाडा पर हाई टैरिफ लगाने की वजह फिलिस्तीन को अलग देश के तौर पर मान्यता देना बताया है।
हालांकि कनाडा भी उन देशों में शामिल है जो डेयरी और एग्रीकल्चर के क्षेत्र में विदेशी देशों के साथ समझौता नहीं करता।
कनाडा ने अपने डेयरी, पोल्ट्री (मुर्गी) और अंडे के उत्पादन को नियंत्रित करने के लिए सप्लाई मैनेजमेंट सिस्टम बनाया है।
इसमें किसानों को सिर्फ उतनी ही मात्रा उगानी होती है जितनी बाजार में जरूरत है। इसका फायदा यह होता है कि किसानों को अच्छा दाम मिलता है और उत्पादन ज्यादा नहीं होता।
कनाडा विदेशी डेयरी और पोल्ट्री उत्पादों पर बहुत ज्यादा टैक्स और आयात कोटा लगाता है। जो विदेशी उत्पाद कोटा से बाहर आते हैं, उन पर बहुत ऊंचा टैरिफ (200-300% तक) लगाया जाता है।
इससे विदेशी उत्पादों का बाजार में आना मुश्किल होता है और स्थानीय उत्पादकों को फायदा मिलता है।

स्विट्जरलैंड: डेयरी और मांस पर हाई टैक्स
अमेरिका ने स्विट्जरलैंड पर 39% टैरिफ लगाया है। यह देश भी हाई टैरिफ की लिस्ट में है। ट्रम्प का कहना है कि अमेरिका और स्विट्जरलैंड के बीच व्यापार असंतुलन (45 अरब अमेरिकी डॉलर) बहुत ज्यादा है।
स्विट्जरलैंड अपने डेयरी और मांस जैसे कृषि उत्पादों पर बहुत अधिक टैक्स लगाता है ताकि स्थानीय किसान सुरक्षित रहें। इसके कारण विदेशी उत्पादों का बाजार में आना मुश्किल होता है।
स्विट्जरलैंड में देश की खेती का करीब 25% हिस्सा डेयरी से आता है। यहां पर सरकार किसानों से फसल खरीदने में मदद करती है, ताकि वे खेती जारी रखें और साथ ही पर्यावरण की भी रक्षा हो।
आइसलैंड: विदेशी प्रोडक्ट पर हाई टैक्स
अमेरिका ने आइसलैंड पर 15% टैरिफ लगाया है। यह सबसे कम टैरिफ रेट में से है। हालांकि इसके बावजूद आइसलैंड उन देशों में शामिल है जिसने डेयरी प्रोडक्ट और एग्रीकल्चर को लेकर विदेशी देशों के साथ समझौता नहीं किया है।
आइसलैंड भी अपने कृषि और डेयरी उत्पादों पर बहुत ज्यादा सब्सिडी देता है और विदेशी प्रोडक्ट पर बहुत ज्यादा टैक्स लगाता है ताकि स्थानीय किसान सुरक्षित रहें। विदेशी उत्पादों के लिए बाजार को सीमित रखा गया है।
सरकार स्थानीय किसानों को आर्थिक सहायता और सब्सिडी देती है ताकि वे खेती-बाड़ी जारी रखें और देश की खाद्य सुरक्षा बनी रहे।
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