Monday, August 11, 2025
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Sheikh Hasina Coup; Bashar Assad | Ashraf Ghani Exile Crisis Situation | खाली हाथ देश छोड़कर भागीं शेख हसीना: हेलिकॉप्टर में नोट भरकर ले गए अफगान प्रेसिडेंट; जानिए तख्तापलट के बाद भागने वाले 5 नेताओं के हालात


2 घंटे पहले

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बांग्लादेश की पूर्व PM शेख हसीना के तख्तापलट को 1 साल पूरे हो चुके हैं। 5 अगस्त 2024 को हसीना ने खाली हाथ बांग्लादेश छोड़ दिया था और अपनी जान बचाने के लिए भारत आ गई थीं। तब से वे भारत में गुमनाम जिंदगी जी रही हैं।

शेख हसीना अकेली वर्ल्ड लीडर्स नहीं हैं, जिन्हें अपना देश छोड़ना पड़ा है। दुनिया में ऐसे कई लीडर्स हैं जिन्हें तख्तापलट, जनता का विद्रोह, गिरफ्तारी या मौत की सजा के डर से देश छोड़ना पड़ा।

हिंसक प्रदर्शनों के बाद शेख हसीना ने देश छोड़ दिया था और हेलिकॉप्टर में बैठकर भारत आ गई थीं।

हिंसक प्रदर्शनों के बाद शेख हसीना ने देश छोड़ दिया था और हेलिकॉप्टर में बैठकर भारत आ गई थीं।

इस स्टोरी में 21वीं सदी के उन 5 नेताओं के बारे में जानिए जो अपना देश छोड़ दूसरे देशों में शरण लेने को मजबूर हैं…

1. अफगानिस्तान- तालिबान के डर से देश छोड़ा, हेलिकॉप्टर में पैसे लेकर UAE भागे गनी

अशरफ गनी एक प्रभावशाली पख्तून परिवार से हैं। रूस के अफगानिस्तान पर हमले के बाद गनी ने देश छोड़ दिया था और अमेरिका चले गए थे। वहां उन्होंने कई यूनिवर्सिटी में पढ़ाया और फिर वर्ल्ड बैंक से भी जुड़े रहे। साल 2001 में अफगानिस्तान से तालिबान शासन के खात्मे के बाद वे वापस लौटे।

अमेरिका की मदद से साल 2014 में राष्ट्रपति बने। हालांकि साल 2020 में दोहा समझौते के बाद जब अमेरिका ने अफगानिस्तान से सेना हटाना शुरू किया, तो इससे गनी की सरकार कमजोर पड़ गई और 2021 में तालिबान ने तेजी से देश पर कब्जा कर लिया।

15 अगस्त 2021 को तालिबान के काबुल पहुंचने पर गनी हेलिकॉप्टर से राष्ट्रपति भवन छोड़कर भाग निकले। उन्होंने बाद में कहा कि उन्होंने खून-खराबे को रोकने के लिए ऐसा किया। काबुल में रूसी दूतावास ने दावा किया कि गनी अपने साथ हेलिकॉप्टर में 169 मिलियन डॉलर (करीब 1400 करोड़ रुपए) लेकर भागे हैं।

हालांकि गनी ने इन सभी दावों को सिरे से खारिज किया है। फिलहाल वे UAE के नेताओं से बातचीत करके फिर से सार्वजनिक जीवन में एक्टिव होने की कोशिश कर रहे हैं। इसके अलावा वे सोशल मीडिया पर अफगानिस्तान से जुड़े पोस्ट करते रहते हैं।

2. सीरिया- 24 साल तक बसर अल असद ने राज किया, सिर्फ 11 दिन में सत्ता छिनी

बशर अल-असद साल 2000 में अपने पिता की मृत्यु के बाद सीरिया के राष्ट्रपति बने थे। सत्ता संभालने के बाद शुरुआत में उन्होंने खुद को सुधारवादी और आधुनिक नेता के तौर पर पेश किया। साल 2011 में जब अरब क्रांति की लहर सीरिया तक पहुंची तो उन्होंने इसे सख्ती से दबाने की कोशिश की।

रूस और ईरान जैसे देशों की मदद से असद ने देश में चल रहे विद्रोह को दबा दिया। हालांकि 2024 में स्थितियां बदल गईं। तुर्किये के समर्थन वाली सीरियन नेशनल आर्मी और हयात तहरीर अल-शाम जैसे गुटों ने विद्रोह कर दिया। जान बचाने के लिए असद को रूस भागना पड़ा और सिर्फ 11 दिन में असद की सत्ता छिन गई।

बशर अल-असद फिलहाल मॉस्को में शरण लिए हुए हैं। उन्हें राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा लेने या मॉस्को छोड़ने की इजाजत नहीं है।

3. वेनेजुएला- गुआइडो ने खुद को राष्ट्रपति घोषित किया, फिर देश छोड़ भागे

एक छात्र नेता के तौर पर राजनीति में एंट्री करने वाले जुआन गुआइडो बाद में वेनेजुएला में प्रमुख विपक्षी नेता बन गए। साल 2018 में वेनेजुएला में राष्ट्रपति चुनाव हुए, जिसे निकोलन मादुरो ने जीता। विपक्ष को पूरी चुनाव प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया था, इसलिए अमेरिका समेत 60 देशों ने चुनाव को अवैध माना।

इसके बाद गुआइडो ने मादुरो की जीत को अवैध करार देते हुए खुद को वेनेजुएला का अंतरिम राष्ट्रपति घोषित कर दिया। देश की अधिकांश जनता गुआइडो के साथ थी। उन्हें देश के विपक्षी नेताओं समेत अमेरिका और दर्जनों देशों ने मान्यता भी दी।

गुआइडो ने मादुरो को हटाने के लिए सेना से समर्थन मांगा, लेकिन नाकाम रहे। अप्रैल 2019 में गुआइडो ने मादुरो को हटाने के लिए ‘ऑपरेशन लिबर्टी’ विद्रोह शुरू किया, लेकिन वह असफल रहे।

गुआइडो के इस कदम की बहुत आलोचना हुई। मादुरो ने गुआइडो को विदेशी ताकतों का मोहरा बताया और उन पर कई मुकदमे किए। अमेरिका 2021 तक गुआइडो को समर्थन देता रहा, लेकिन बाद में वह समर्थन भी खत्म हो गया।

इसके बाद वेनेजुएला की विपक्षी पार्टियों ने गुआइडो को समर्थन देना बंद कर दिया। इसके बाद गिरफ्तारी के डर से वे अप्रैल 2023 में देश से भाग गए। उन्होंने अमेरिका में शरण मांगी। वे अब अमेरिका में ही रहते हैं।

जुआन गुआइडो का राजनीतिक कद पहले के मुकाबले काफी घट चुका है। अब वे सोशल मीडिया पर ही एक्टिव नजर आते हैं।

4. बेलारूस- पति के लिए राष्ट्रपति चुनाव लड़ा, बच्चों के डर से देश छोड़ा

पुतिन के खास माने जाने वाले अलेक्जेंडर लुकाशेंको ने 31 साल से बेलारूस की सत्ता पर कब्जा कर रखा है। वे देश के पहले और अब तक के एकमात्र निर्वाचित राष्ट्रपति हैं। साल 2020 में एक बिजनेसमैन सर्गेई तिखानोव्स्की ने लुकाशेंको को खुली चुनौती दी।

तिखानोव्स्की ने बिजनेस छोड़ एक यूट्यूब चैनल शुरू किया और लुकाशेंको शासन की खामियों के खुलासे करने लगे। 2020 में उन्होंने ऐलान किया कि वे राष्ट्रपति चुनाव लड़ेंगे, लेकिन जैसे ही उन्होंने नामांकन दाखिल किया, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर सार्वजनिक व्यवस्था भंग करने के आरोप लगे।

इसके बाद तिखानोव्स्काया की पत्नी स्वेतलाना ने राष्ट्रपति लुकाशेंको के खिलाफ चुनाव लड़ने का ऐलान किया। शुरुआत में किसी ने उन्हें गंभीरता से नहीं लिया, लेकिन वे देखते ही देखते विपक्ष की प्रमुख उम्मीदवार बन गईं और पूरे देश में लुकाशेंको के खिलाफ एक ऐतिहासिक जन आंदोलन खड़ा हो गया।

9 अगस्त 2020 को बेलारूस में चुनाव हुए। लुकाशेंको ने 80% वोटों के साथ जीत का दावा किया, जबकि स्वेतलाना को सिर्फ 10% वोट मिले। रिजल्ट के बाद देशभर में गुस्सा भड़क उठा। हजारों लोग सड़कों पर उतर गए।

हालांकि 24 घंटे बाद स्वेतलाना गायब हो गईं। बाद में पता चला, उन्हें बच्चों की जान की धमकी देकर लिथुआनिया भेज दिया गया। तब से लेकर अब तक स्वेतलाना निर्वासन में जीवन जी रही हैं। उनके पति तिखानोवस्की को बेलारूस सरकार ने 2021 में 18 साल जेल की सजा सुनाई।

5. यूक्रेन- 11 साल से रूस में रह रहे विक्टर यानुकोविच, अब भी खुद को राष्ट्रपति मानते हैं

विक्टर यानुकोविच यूक्रेन के इतिहास के सबसे विवादास्पद नेताओं में से एक हैं। रूस समर्थक विक्टर साल 2010 में राष्ट्रपति बने थे। विक्टर यूक्रेन की पहचान को यूरोप की बजाय रूस से जोड़ते थे।

राष्ट्रपति बनने के बाद विक्टर ने यूरोपीय यूनियन से दूरी और रूस से नजदीकी बनानी शुरू की। उन्होंने रूस को क्रीमिया में नौसैनिक अड्डा बनाने की इजाजत दी और 2013 में यूरोपीय यूनियन के साथ हुए एग्रीमेंट को खारिज कर दिया।

इसके विरोध में देशभर में विरोध प्रदर्शन भड़क उठे। इसे यूरोमैदान के नाम से जाना जाता है। फरवरी 2014 में सुरक्षा बलों ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाईं, इसमें 100 से ज्यादा लोग मारे गए। इससे प्रदर्शन और हिंसक हो गए। विक्टर ने 21 फरवरी को देश छोड़ दिया और रूस में शरण ली।

विक्टर अभी भी यूक्रेन के वैध राष्ट्रपति होने का दावा करते हैं। हालांकि वे राजनीतिक गतिविधियों से लगभग नदारद हैं।

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