Sunday, July 27, 2025
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trump-birthright-citizenship-order-us-federal judge | ट्रम्प के बर्थराइट सिटीजनशिप आदेश पर तीसरी बार रोक: फेडरल कोर्ट बोला-ये संविधान के खिलाफ, अंतिम फैसला सुप्रीम कोर्ट करेगा


वॉशिंगटन डीसी1 घंटे पहले

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अमेरिका की एक फेडरल कोर्ट ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के उस आदेश को फिर से रोक दिया है जिसमें कहा गया था कि अगर किसी बच्चे के माता-पिता अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे हैं, तो उस बच्चे को अमेरिकी नागरिकता नहीं मिलेगी।

यह तीसरी बार है जब अदालत ने ट्रम्प का यह आदेश लागू होने से रोका है। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मामले पर आखिरी फैसला सुप्रीम कोर्ट ही करेगा, लेकिन जब तक वहां से कोई आदेश नहीं आता, ट्रम्प का ये नियम लागू नहीं होगा। बोस्टन के जज लियो सोरोकिन ने कहा,

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बर्थ राइट सिटीजनशिप संविधान के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि अमेरिका में जो बच्चा जन्म लेता है, वह अमेरिका का नागरिक होता है और यह नियम कोई राष्ट्रपति अपने आदेश से नहीं बदल सकता।

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ट्रम्प ने अपने शपथ ग्रहण वाले दिन यानी 20 जनवरी को एग्जीक्यूटिव ऑर्डर पर साइन कर बर्थ राइट सिटीजनशिप पर रोक लगा दी थी। इसके कुछ ही दिन बाद अमेरिका की फेडरल कोर्ट ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के जन्मजात नागरिकता अधिकार समाप्त करने के फैसले पर 14 दिनों के लिए रोक लगा दी थी।

ट्रम्प ने 20 जनवरी को एग्जीक्यूटिव ऑर्डर पर साइन कर जन्मजात नागरिकता के अधिकार पर रोक लगाई थी।

ट्रम्प ने 20 जनवरी को एग्जीक्यूटिव ऑर्डर पर साइन कर जन्मजात नागरिकता के अधिकार पर रोक लगाई थी।

28 जूनः कोर्ट ने ट्रम्प के पक्ष में फैसला दिया था

इससे पहले 28 जून को अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति ट्रम्प के पक्ष में फैसला सुनाया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि निचली अदालतों के जज ट्रम्प के जन्म से जुड़ी नागरिकता वाले आदेश पर पूरे देश में रोक नहीं लगा सकते हैं। उन्हें अपने आदेश पर फिर से विचार करना चाहिए।

ये जज ट्रम्प के फैसले पर रोक लगाकर उनके काम में लगातार अड़चन डाल रहे थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ऐसा करना उनके लिए मुश्किल हो गया था। इससे पहले भी अमेरिका की निचली अदालतों ने तीन अलग-अलग मुकदमों में ट्रम्प के जन्मजात नागरिकता आदेश को लागू होने से पहले ही अस्थायी तौर पर रोक दिया था।

सुप्रीम कोर्ट बोला था- फेडरल जज ने अधिकार से बाहर जाकर काम किया

सुप्रीम कोर्ट ने 6-3 के बहुमत से कहा था कि देश भर में नीतियों को रोकने का फैसला अकेले फेडरल जज नहीं कर सकता। अब अगर ट्रम्प के आदेश जैसे किसी मामले को रोकना होगा, तो उसे कई लोगों को मिलकर मुकदमा करना होगा, न कि सिर्फ एक राज्य या व्यक्ति को।

फैसला लिखने वाली जस्टिस एमी कोनी बैरेट ने कहा था- फेडरल कोर्ट्स का काम सरकारी आदेशों की निगरानी करना नहीं है। उनका काम संसद की तरफ से दी गई ताकतों के मुताबिक मामलों को हल करना है।

हालांकि, कोर्ट ने ट्रम्प के आदेश पर तुरंत कोई फैसला नहीं सुनाया था और ट्रम्प के आदेश को 30 दिन तक यानी 28 जुलाई तक लागू नहीं होने देने का भी आदेश दिया था। इसका मतलब है कि अभी के लिए अमेरिका में जन्मे बच्चों को नागरिकता मिलती रहेगी, जैसे पहले मिलती थी।

ट्रम्प बोले- अब अपनी नीतियों को तेजी से लागू करेंगे

ट्रम्प ने इस फैसले को अपनी जीत बताया था। उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला देश के लिए बहुत अच्छा है। वहीं, जज सोनिया सोटोमायोर ने फैसले का विरोध करते हुए कहा कि ये कानून का मजाक है।

ट्रम्प ने इस फैसले को शानदार बताते हुए सुप्रीम कोर्ट के जजों को शुक्रिया कहा था। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के नौ में से तीन जजों की नियुक्ति ट्रम्प ने ही की थी।

ट्रम्प ने कहा- पिछला एक घंटा शानदार रहा। अब हम उन नीतियों को लागू करने के लिए आगे बढ़ सकते हैं, जिन्हें गलत तरीके से रोका गया था। ट्रम्प ने कहा- यह फैसला संविधान और कानून की जीत है। अब वे अपनी नीतियों को लागू करने के लिए तेजी से आगे बढ़ेंगे।

ट्रम्प के आदेश से 3 स्थितियों में नहीं मिलती नागरिकता

ट्रम्प ने जिस एग्जीक्यूटिव ऑर्डर से जन्मजात नागरिकता कानून को खत्म किया, उसका नाम ‘प्रोटेक्टिंग द मीनिंग एंड वैल्यू ऑफ अमेरिकन सिटिजनशिप’ है। यह आदेश 3 परिस्थितियों में अमेरिकी नागरिकता देने से इनकार करता है।

  • अमेरिका में पैदा हुए बच्चे की मां यदि अवैध रूप से वहां रह रही हो।
  • बच्चे के जन्म के समय मां अमेरिका की वैध, लेकिन अस्थायी निवासी हो।
  • पिता, बच्चे के जन्म के समय अमेरिका का नागरिक या वैध स्थायी निवासी न हो।

अमेरिकी संविधान का 14वां संशोधन जन्मजात नागरिकता का अधिकार देता है। इसके जरिए ही अमेरिका में रहने वाले अप्रवासियों के बच्चों को भी नागरिकता का अधिकार मिलता है।

अमेरिका में 157 साल पहले मिला था जन्मजात नागरिकता का अधिकार

1865 में अमेरिकी गृहयुद्ध खत्म होने के बाद, जुलाई 1868 में अमेरिकी संसद में 14वें संशोधन को मंजूरी दी गई थी। इसमें कहा गया था कि देश में पैदा हुए सभी अमेरिकी नागरिक हैं। इस संशोधन का मकसद गुलामी के शिकार अश्वेत लोगों को अमेरिकी नागरिकता देना था।

हालांकि, इस संशोधन की व्याख्या इस प्रकार की गई है कि इसमें अमेरिका में जन्में सभी बच्चों को शामिल किया जाएगा, चाहे उनके माता-पिता का इमिग्रेशन स्टेट्स कुछ भी हो।

इस कानून का फायदा उठाकर गरीब और युद्धग्रस्त देशों से आए लोग अमेरिका आकर बच्चों को जन्म देते हैं। ये लोग पढ़ाई, रिसर्च, नौकरी के आधार पर अमेरिका में रुकते हैं। बच्चे का जन्म होते ही उन्हें अमेरिकी नागरिकता मिल जाती है। नागरिकता के बहाने माता-पिता को अमेरिका में रहने की कानूनी वजह भी मिल जाती है।

अमेरिका में यह ट्रेंड काफी लंबे समय से जोरों पर है। आलोचक इसे बर्थ टूरिज्म कहते हैं। प्यू रिसर्च सेंटर की 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक 16 लाख भारतीय बच्चों को अमेरिका में जन्म लेने की वजह से नागरिकता मिली है।

अमेरिकी संविधान का 14वां संशोधन बच्चों को जन्मजात नागरिकता की गारंटी देता है। अमेरिका में यह कानून 150 साल से लागू है।

अमेरिकी संविधान का 14वां संशोधन बच्चों को जन्मजात नागरिकता की गारंटी देता है। अमेरिका में यह कानून 150 साल से लागू है।

सुप्रीम कोर्ट के अंतिम आदेश का भारतीयों पर क्या असर होगा

अमेरिकी सेंसस ब्यूरो के 2024 तक के आंकड़ों के मुताबिक अमेरिका में करीब 54 लाख भारतीय रहते हैं। यह अमेरिका की आबादी का करीब डेढ़ फीसदी है। इनमें से दो-तिहाई लोग फर्स्ट जेनरेशन इमिग्रेंट्स हैं। यानी कि परिवार में सबसे पहले वही अमेरिका गए, लेकिन बाकी अमेरिका में जन्मे नागरिक हैं।

सुप्रीम कोर्ट अगर ट्रम्प के बिल के पक्ष में आदेश देता है तो फर्स्ट जेनरेशन इमिग्रेंट्स को अमेरिकी नागरिकता मिलना मुश्किल हो जाएगा। हालांकि, अगर इसके खिलाफ देगा तो पहले की तरह नागरिकता बनी रहेगी।

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