टोक्यो1 घंटे पहले
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नागासागी पर 9 अगस्त 1945 को 9 अगस्त 1945 को B-29 से प्लूटोनियम बम गिराया गया था।
जापान के नागासाकी में शनिवार को अमेरिकी परमाणु हमले की 80वीं बरसी मनाई गई। इस मौके पर हमले से बचे हुए लोगों ने कहा कि उनका शहर दुनिया का आखिरी स्थान बने, जहां परमाणु बम गिरा हो।
9 अगस्त 1945 को अमेरिका ने नागासाकी पर परमाणु बम गिराया था। इसमें करीब 70000 लोग मारे गए। इस बम का नाम ‘फैटमैन’ था।
इससे तीन दिन पहले यानी 6 अगस्त को अमेरिका ने हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराया था। इस बम का नाम लिटिल बॉय था। इसमें 1.4 लाख लोगों की मौत हुई थी।
इन हमलों के बाद 15 अगस्त 1945 को जापान ने सरेंडर कर दिया और द्वितीय विश्व युद्ध खत्म हो गया।
हमले में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि दी गई

नागासाकी पर हमले की 80वीं वर्षगांठ के मौके पर पीस पार्क में कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस दौरान स्कूली बच्चे फूल लिए नजर आए।

नागासाकी शांति प्रतिमा के सामने खड़े होकर लोगों ने हमले के पीड़ितों के लिए प्रार्थना की।

हमले में जिंदा बचे 93 साल के हिरोशी निशिओका कार्यक्रम में भाषण देने पहुंचे।
चीन ने समारोह में शामिल होने से इनकार किया
नागासाकी प्रशासन ने सभी देशों को समारोह में शामिल होने का निमंत्रण भेजा था। हालांकि चीन ने बिना कारण बताए आने से इनकार कर दिया।
नागासाकी पीस पार्क में आयोजित समारोह में 95 देशों के प्रतिनिधि, जापान के प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा और नागासाकी के मेयर शिरो सुजुकी मौजूद रहे। कुल 3 हजार से ज्यादा लोग इस कार्यक्रम में शामिल हुए।
पिछले साल यह कार्यक्रम विवाद में आ गया था क्योंकि जापान ने इजराइल को आमंत्रित नहीं किया था, जिसके चलते अमेरिकी राजदूत और कई पश्चिमी देशों के प्रतिनिधि शामिल नहीं हुए थे।
हमलों से बचे 99 हजार लोग अभी भी जिंदा
इन परमाणु हमलों से बचे 99,130 लोग अभी भी जिंदा है। इन्हें हिबाकुशा कहा जाता है। 1945 के मुकाबले इनकी संख्या सिर्फ एक चौथाई रह गई है और औसत उम्र 86 साल से अधिक है।
जिंदा बचे लोगों में से कई लोग हमले के वक्त इतने छोटे थे कि उनकी यादें भी धुंधली हैं। बावजूद इसके वे परमाणु हथियारों के खत्म होने का सपना देख रहे हैं।

नागासाकी पर हुए परमाणु बम हमले में बच गए लोग आज भी जीवित हैं।
अमेरिका ने हिरोशिमा और नागासाकी पर बम क्यों गिराया?
1945 में द्वितीय विश्व युद्ध के खत्म होते-होते जापान और अमेरिका के रिश्ते खराब हो गए। खासकर तब जब जापान की सेना ने ईस्ट-इंडीज के तेल-समृद्ध क्षेत्रों पर कब्जा करने के इरादे से इंडो-चाइना को निशाना बनाने का फैसला किया। इसलिए, अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने आत्मसमर्पण के लिए जापान पर परमाणु हमला किया।
हैरी एस ट्रूमैन उस समय अमेरिका के राष्ट्रपति थे। उन्होंने चेतावनी दी थी, “जापान या तो समर्पण करे या तत्काल और पूरी तरह से विनाश के लिए तैयार रहे। हम जापान के किसी भी शहर को हवा से ही मिटा देने में सक्षम हैं।’’ 26 जुलाई को जर्मनी में पोट्सडैम की घोषणा हुई थी, जिसमें जापान को आत्मसमर्पण के लिए चेतावनी दी गई।
हालांकि, इसे लेकर अन्य सिद्धांत हैं। परमाणु हमला कर जापान को समर्पण के लिए मजबूर करने की जरूरत नहीं थी। एक इतिहासकार गर अल्परोवित्ज ने 1965 में अपनी एक किताब में तर्क दिया है कि जापानी शहरों पर हमला इसलिए किया गया ताकि युद्ध के बाद सोवियत संघ के साथ राजनयिक सौदेबाजी के लिए मजबूत स्थिति हासिल हो सके।
हालांकि, परमाणु हमले के तत्काल बाद 15 अगस्त 1945 को जापान ने बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दिया था।

1945 में ली गई इस तस्वीर में इसमें अमेरिका द्वारा हिरोशिमा पर परमाणु हमला किए जाने के बाद की स्थिति नजर आ रही है।

9 अगस्त 1945 को नागासाकी पर परमाणु हमले के बाद वहां मौजूद सारी इमारतें मलबे के ढेर में बदल गई थीं। लेकिन सिर्फ मेडिकल कॉलेज अस्पताल की इमारत ही खड़ी रह पाई। यह ग्राउंड जीरो से सिर्फ 800 मीटर की दूरी पर स्थित था।
6 और 9 अगस्त को क्या हुआ?
6 अगस्त को सुबह 8:15 बजे अमेरिका के इनोला गे विमान ने हिरोशिमा पर पहला एटोमिक बम गिराया। उस वक्त तापमान 10 लाख डिग्री सेल्सियस से भी ज्यादा गर्म हो गया था। करीब 10 किलोमीटर तक सबकुछ जलकर राख हो गया। हवा की गति काफी तेज हो गई। विस्फोट और थर्मल किरणों से बिल्डिंग के टुकड़े-टुकड़े हो गए।
हिरोशिमा की आबादी उस वक्त करीब 3 लाख 50 हजार थी। इनमें 43 हजार जापानी सैनिक थे। लिटिल बॉय के नाम से जाना जाने वाला यूरेनियम हथियार को जब हिरोशिमा में गिराया गया, तब वह 1,850 फीट की ऊंचाई पर फटा। इसकी क्षमता 12.5 किलोटन टीएनटी के बराबर थी।
यूएस स्ट्रेटेजिक बॉम्बिंग सर्वे ऑफ 1946 ने बताया कि बम शहर के सेंटर से उत्तर-पश्चिम में विस्फोट किया गया था। इसमें 80,000 से ज्यादा लोग मारे गए और कई घायल हुए थे।
अगले दिन न्यूयॉर्क डेली न्यूज का हेडलाइन था- ‘बेयर सेक्रेट विपन ‘एटम’ बम जापान मोस्ट डिस्ट्रक्टिव फोर्स इन यूनिवर्स’। न्यूयॉर्क टाइम्स ने हेडलाइन दिया- ‘जापान पर पहला परमाणु बम गिराया गया; मिसाइल 20 हजार टन टीएनटी के बराबर होता है; ट्रूमैन की चेतावनी बर्बादी की बारिश’।
तीन दिन के बाद 9 अगस्त को 11 बजे (लोकल टाइम) नागासाकी पर दूसरा एटोमिक बम गिराया गया। इसकी आबादी उस वक्त करीब 2 लाख 70 हजार थी। वहीं, नागासाकी पर ‘फैटमैन’ प्लूटोनियम बम गिराया गया तो 22 किलोटन टीएनटी के बराबर विस्फोट हुआ। इस हमले में 40,000 से ज्यादा लोगों की जान गई थी।

शहर के क्या हालात थे?
विस्फोट और गर्मी के चलते लोगों के शरीर से त्वचा लटक रही थी। पेड़ों की पत्तियां झड़ चुकी थी। एक सोशियोलॉजिस्ट ने बताया,

शहर का एक पार्क लोगों के शव से भरा हुआ था। वहां मैंने एक बेहद भयावह दृश्य देखा। कुछ छोटी लड़कियां वहां पड़ी हुईं थीं, जिनके न केवल कपड़े फटे थे, बल्कि उनकी त्वचा भी शरीर से अलग हो गई थी।
मेरे दिमाग में तत्काल यह ख्याल आया कि यह नरक से कम नहीं है, जैसे मैंने अक्सर सोचा है। हिरोशिमा आग में जल रहा था। विस्फोट के थोड़ी देर के बाद ‘काली बारिश’ शुरू हो गई। इसमें रेडियोएक्टिव तत्व मौजूद थे।
सोशियोलॉजिस्ट ने बताया, बीस साल की शिबायामा हिरोशी (जो हमले के समय शहर से बाहर थी) ने हमले के कुछ घंटों के बाद हिरोशिमा पहुंची। क्योबाशी नदी को पार करते हुए उसने नरक की एक पेंटिंग की याद दिलाती हुई एक दृश्य देखा।
नदी में कई लोगों के शव तैर रहे थे। उनके चेहरे का साइज सामान्य से दोगुना हो गया था। उनके पैर लकड़ी के जैसे कड़े हो गए थे। धमाके के बाद पूरे शहर में कई रंगों में गंदे भूरे और काले रंग के बादल छाए हुए थे।
हिरोशिमा और नागासाकी दोनों शहर में 1.2 किलोमीटर के दायरे में आने वाले 50% लोग विस्फोट के दिन ही मारे गए थे। वहीं, 80-100% लोगों की रेडिएशन और घायल होने के बाद जान गई। पांच महीने के भीतर हिरोशिमा के 3 लाख 50 हजार की आबादी में 1 लाख 40 हजार लोग मारे गए, जबकि नागासाकी के 2 लाख 70 हजार की आबादी में 70 हजार लोग की जान गई।