रंगों से भरी इस दुनिया में कुछ बच्चे ऐसे हैं, जिन्हें लाल और हरा रंग एक धुंधली परछाई की तरह दिखता है. ऐसा ही कुछ था 17 साल के अहान रितेश प्रजापति के साथ, जो कलर ब्लाइंडनेस से जूझ रहे थे. हालांकि, अहान ने इस कमजोरी को अपनी सबसे बड़ी ताकत बना लिया. उनकी कहानी हर उस इंसान के लिए प्रेरणा है, जो मुश्किलों के सामने हार मान लेता है.
अहान ने बनाया खास मॉडल
अहान ने मशीन लर्निंग की मदद से ऐसा मॉडल बनाया, जो किताबों के चित्रों और नक्शों को इस तरह बदल देता है कि कलर ब्लाइंड बच्चे भी बाकी बच्चों की तरह पढ़ाई कर सकते हैं. इस मॉडल की खास बात यह है कि यह 99.7 पर्सेंट सटीकता के साथ तस्वीरों को अनुकूल बनाता है. इससे न सिर्फ पढ़ाई आसान होती है, बल्कि उन बच्चों के सपनों को भी पंख मिलते हैं, जो रंगों की कमी के कारण पीछे रह जाते हैं. इस शानदार नवाचार के लिए अहान को ब्रिटेन के प्रतिष्ठित क्रेस्ट गोल्ड अवॉर्ड से सम्मानित किया गया. एक भारतीय लड़के का सपना अब पूरी दुनिया के लिए उम्मीद बन चुका है.
इस स्कूल ने की मदद
इस यात्रा में अदाणी इंटरनेशनल स्कूल ने अहम भूमिका निभाई. इस स्कूल ने अहान को न सिर्फ मंच दिया, बल्कि सही मार्गदर्शन और पहचान भी दी. अदाणी इंटरनेशनल स्कूल की मदद से ही अहान अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंच पाए. स्कूल के सहयोग से अहान ने 30 से ज्यादा संस्थानों में स्क्रीनिंग कराई और पाया कि करीब 120 छात्र कलर ब्लाइंडनेस से जूझ रहे हैं. सोचिए, अगर यह पहल न हुई होती तो कितने बच्चों के सपने अनदेखे रह जाते.
अहान से मिलती है यह सीख
अहान की कहानी हमें सिखाती है कि हर कमजोरी में ताकत छुपी होती है. बस विश्वास और सही मौके की जरूरत होती है. उनकी इस उपलब्धि से न सिर्फ भारत का नाम रोशन हुआ, बल्कि उन बच्चों को भी नई उम्मीद मिली, जो रंगों की दुनिया में खोए हुए थे. अहान का यह प्रयास हमें बताता है कि अगर कुछ ठान लो तो कोई भी मुश्किल सपनों की उड़ान को नहीं रोक सकती है.
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