
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर लगे 50% टैरिफ को कम करने के संकेत देकर अंतरराष्ट्रीय व्यापार जगत में हलचल मचा दी है। भारत में इस बयान को लेकर उत्साह तो है, लेकिन कूटनीतिक हलकों में इसे लेकर संदेह भी जताया जा रहा है। दरअसल, ट्रंप ने कहा कि भारत पर लगाया गया ड्यूटी ‘किसी दिन’ हटाई जाएगी और इसका कारण उन्होंने भारत के रूसी तेल आयात में कमी को बताया। सवाल यह है कि क्या यह बयान वास्तविक नीति बदलाव का संकेत है या केवल राजनीतिक बयानबाजी?
पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने इस पर बड़ा बयान देते हुए कहा है कि ट्रंप की बातों को बहुत गंभीरता से नहीं लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि व्हाइट हाउस में कोई भी जरूरी काम तब तक नहीं होता जब तक पहले ट्रंप की चापलूसी न की जाए। सिब्बल ने यह टिप्पणी उस समय की जब भारत में नए अमेरिकी राजदूत सर्जियो गोर के शपथ ग्रहण समारोह में अमेरिकी विदेश सचिव मार्को रुबियो ने ट्रंप की जमकर तारीफ की थी।
ट्रंप की तारीफों का सच
सिब्बल के मुताबिक, ट्रंप अक्सर विदेशी नेताओं की तारीफ करते हैं, लेकिन उनके शब्दों का असर उनके फैसलों में शायद ही दिखता है। उन्होंने भारत और पीएम मोदी के बारे में अच्छी बातें कहीं, लेकिन टैरिफ अभी तक जस का तस है। उन्होंने कहा कि ट्रंप की ऐसी तारीफें दरअसल उनकी खुद की प्रशंसा का तरीका हैं, जिससे वह दुनिया के सामने खुद को प्रभावशाली और दोस्ताना दिखाना चाहते हैं।
टैरिफ पर ट्रंप का बयान
ट्रंप ने समारोह के दौरान कहा था कि भारत पर टैरिफ बहुत ज्यादा हैं क्योंकि रूस से तेल आ रहा था… अब उन्होंने रूस से तेल लेना काफी कम कर दिया है। हां, हम टैरिफ कम करने वाले हैं… किसी समय इसे हटा देंगे। हालांकि, इस बयान को लेकर एक्सपर्ट्स का मानना है कि ट्रंप की नीति व्यवहारिक से ज्यादा राजनीतिक है।
दोस्ती पर उठे सवाल
रघुराम राजन जैसे अर्थशास्त्रियों ने भी पहले कहा था कि पीएम मोदी और ट्रंप के मजबूत रिश्तों के बावजूद भारत को 50% टैरिफ का सामना करना पड़ रहा है, जबकि पाकिस्तान पर केवल 19% टैरिफ लागू है। ट्रंप ने भारत को इंडो-पैसिफिक क्षेत्र का महत्वपूर्ण आर्थिक और रणनीतिक साझेदार बताया, लेकिन सवाल यही है कि क्या यह साझेदारी सिर्फ मंच पर कही जाने वाली बातें हैं या वास्तव में कोई ठोस आर्थिक बदलाव देखने को मिलेगा?


