राजनीति में नेताओं की उम्र एक अंतहीन बहस है, जिस पर संघ प्रमुख मोहन भागवत की हालिया टिप्पणी ने उस बहस को फिर से जीवंत कर दिया है. मोहन भागवत की इस टिप्पणी को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही अपने-अपने मतलब निकाल रहे हैं, लेकिन मोहन भागवत की उम्र को लेकर की गई इस टिप्पणी ने इतना तो साफ कर दिया है कि संघ नेताओं की उम्र को लेकर अब सख्त होता जा रहा है.
नौकरी सरकारी हो या प्राइवेट, वहां के लिए न्यूनतम उम्र और अधिकतम उम्र की सीमा निर्धारित है. योग्यताएं भी निर्धारित हैं, लेकिन राजनीति में न्यूनतम उम्र के अलावा ऐसी कोई अर्हता निर्धारित नहीं है. लिहाजा बार-बार ये सवाल उठता है कि आखिर नेताओं को किस उम्र तक राजनीति में सक्रिय होना चाहिए. अब संघ प्रमुख ने इस बड़े सियासी सवाल का ऐसा जवाब दे दिया है, जो सबके लिए सबक की तरह है. संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि 75 साल की उम्र पूरी होने के बाद नेताओं को दूसरों को भी मौका देना चाहिए.
नागपुर में मोहन भागवत ने दिया था बयान
मोहन भागवत ने अपने इस बयान के लिए संघ के ही पुराने नेता मोरोपंत पिंगले का एक उदाहरण दिया है. संघ प्रमुख ने नागपुर में मोरोपंत पिंगले पर लिखी किताब मोरोपंत पिंगले-द आर्किटेक्ट ऑफ हिंदू रिसर्जेंस के विमोचन के दौरान एक किस्सा सुनाया. मोहन भागवत ने कहा, “वृंदावन में संघ की एक बैठक हो रही थी. उस बैठक में मोरोपंत पिंगले की उम्र 75 वर्ष होने पर उन्हें सम्मानित करने का फैसला लिया गया था. तत्कालीन सरकार्यवाह शेषाद्रि ने मोरोपंत को शॉल ओढ़ाकर सम्मानित भी किया. जब मोरोपंत के बोलने की बारी आई तो उन्होंने कहा कि मैं 75 साल की उम्र में शॉल पहनने का मतलब जानता हूं. इसका मतलब ये है कि अब आपकी उम्र हो गई है, आप किनारे हट जाओ और दूसरों को काम करने का मौका दो.”
राजनीति से रिटायरमेंट की उम्र पर संघ प्रमुख ने पहले भी दिया है बयान
हालांकि, ये कोई पहला मौका नहीं है, जब संघ प्रमुख ने राजनीति से रिटायरमेंट की उम्र सीमा पर बात की है. साल 2020 में भी मोहन भागवत ने 75 साल की उम्र की लक्ष्मण रेखा की बात की थी और अब एक बार फिर से उनका उम्र को लेकर दिया गया बयान, नए सियासी घमासान खड़े करने के लिए तो पर्याप्त ही है. क्योंकि उम्र पर किसी का कोई जोर नहीं है और वक्त के साथ-साथ नेताओं की उम्र तो बढ़ती ही जाती है. ऐसे नेता बीजेपी में भी हैं और कांग्रेस में भी. तमाम दूसरे दलों में भी उम्रदराज नेताओं की लंबी फेहरिस्त है.
देश के दूसरे दल नहीं पर भाजपा मानती है संघ प्रमुख की बात
अब कांग्रेस या कोई और दूसरा दल तो संघ प्रमुख की बात मानेगी नहीं, लेकिन कुछ अपवाद छोड़ दें तो बीजेपी संघ प्रमुख की बात मानती ही मानती है और जिस तरह से संघ प्रमुख नेताओं की उम्र पर सख्त हैं, उम्मीद है कि आने वाले वक्त में कुछ नेताओं को सियासत को तो अलविदा कहना ही होगा, जिन्हें आप बखूबी जानते हैं. ऐसे में हो सकता है कि साल 2024 के लोकसभा में जीते हुए जिन लोगों को आप संसद भवन की अगली पंक्ति में बैठे हुए देख पाते हैं, उनमें से कुछ लोग शायद 2029 की लोकसभा में बैठे हुए नहीं मिलेंगे.
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