संघ लोक सेवा आयोग यानी UPSC और इससे जुड़ी परीक्षाएं देश की सबसे कठिन परीक्षाओं में गिनी जाती हैं. इन परीक्षाओं में सफलता पाने के लिए सिर्फ किताबों का ज्ञान ही नहीं, बल्कि धैर्य, लगातार मेहनत और खुद पर भरोसा भी जरूरी होता है. उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के रहने वाले मानवेंद्र की कहानी इसी सच्चाई को साबित करती है. शारीरिक चुनौतियों, पारिवारिक दुखों और कठिन हालातों के बावजूद मानवेंद्र ने न सिर्फ अपनी पढ़ाई में बेहतरीन प्रदर्शन किया, बल्कि भारतीय इंजीनियरिंग सेवा यानी IES में सफलता हासिल कर एक मिसाल कायम की है.
मानवेंद्र की जिंदगी की शुरुआत आसान नहीं रही. बचपन से ही उन्हें चलने-फिरने और बोलने में परेशानी थी. उनकी मां रेनु सिंह बताती हैं कि शुरुआती दिनों में डॉक्टरों ने भी साफ कह दिया था कि मानवेंद्र को शारीरिक रूप से कई समस्याएं हैं. यह सुनकर किसी भी परिवार का हौसला टूट सकता था, लेकिन मानवेंद्र के घर में ऐसा नहीं हुआ.
परिवार ने उनकी कमजोरियों पर ध्यान देने के बजाय उनकी ताकत को पहचानने का फैसला किया. मां रेनु के अनुसार, मानवेंद्र शुरू से ही चीजों को गहराई से समझते थे. उनकी सोच उम्र से कहीं ज्यादा परिपक्व थी. ऐसे में परिवार ने तय किया कि शारीरिक सीमाओं को आड़े नहीं आने दिया जाएगा और उनकी पढ़ाई व मानसिक विकास पर पूरा ध्यान दिया जाएगा.
पढ़ाई में दिखने लगी प्रतिभा
सही मार्गदर्शन, नियमित अभ्यास और परिवार के सहयोग से मानवेंद्र की प्रतिभा धीरे-धीरे निखरने लगी. स्कूल के दिनों में ही यह साफ हो गया था कि वह पढ़ाई में काफी तेज हैं. दसवीं तक आते-आते उनके शिक्षक भी मानने लगे थे कि मानवेंद्र कुछ अलग कर सकते हैं.
बारहवीं की पढ़ाई के साथ-साथ मानवेंद्र ने जेईई एडवांस की तैयारी शुरू की. यह दौर उनके लिए काफी चुनौती भरा था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. कड़ी मेहनत का नतीजा यह रहा कि उन्होंने जेईई एडवांस में 63वीं रैंक हासिल की. यह उपलब्धि अपने आप में बड़ी थी और पूरे इलाके में उनकी चर्चा होने लगी.
इसके बाद मानवेंद्र का चयन आईआईटी पटना में हुआ, जहां से उन्होंने बीटेक की पढ़ाई पूरी की. आईआईटी जैसे संस्थान में पढ़ाई करना आसान नहीं होता, लेकिन मानवेंद्र ने यहां भी खुद को साबित किया.
पिता का निधन और मां का सहारा
मानवेंद्र की जिंदगी में एक बड़ा दुख उस समय आया, जब उनके पिता का अचानक निधन हो गया. इस घटना ने पूरे परिवार को झकझोर कर रख दिया. पिता के जाने से घर की जिम्मेदारियां और बढ़ गईं, लेकिन मां रेनु सिंह ने हिम्मत नहीं हारी. रेनु सिंह खुद एक स्कूल की प्रिंसिपल हैं और शिक्षा की ताकत को अच्छी तरह समझती हैं. उन्होंने बेटे को कमजोर पड़ने नहीं दिया और हर कदम पर उसका साथ दिया. मां का यही भरोसा मानवेंद्र के लिए सबसे बड़ी ताकत बन गया.
नानी के घर रहकर की IES की तैयारी
आईआईटी से पढ़ाई पूरी करने के बाद मानवेंद्र ने भारतीय इंजीनियरिंग सेवा परीक्षा की तैयारी शुरू की. इसके लिए उन्होंने नानी के घर पर रहना चुना, जहां उन्हें शांत माहौल और पढ़ाई के लिए पूरा समय मिल सका. मां का भरोसा, परिवार का साथ और खुद पर विश्वास—यही उनकी तैयारी की नींव बनी.
मेहनत लाई रंग
लंबे संघर्ष और कड़ी मेहनत के बाद वह दिन भी आया, जब IES परीक्षा का परिणाम घोषित हुआ. मानवेंद्र ने इसमें 112वीं रैंक हासिल की. यह पल उनके और उनके परिवार के लिए गर्व का क्षण था. आज मानवेंद्र एक IES अधिकारी हैं और देश की सेवा कर रहे हैं.
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